बाबा बूढ़ा अमरनाथ यात्रा संघ

बाबा बढ़ा अमरनाथ यात्रा संघ परिचय

बाबा बूढ़ा अमरनाथ यात्रा संघ एक सामाजिक और 'गैर सरकारी संगठन' है जिसका लक्ष्य है कि देश के सामान्य नागरिकों में राष्ट्रीय सुरक्षा का भाव प्रथम अथवा द्वितीय वरीयता प्राप्त करे। यात्रा संघ “देव पूजा के साथ देश पूजा' में विश्वास करता है। हमारा यह मानना है कि यात्राएं देश की एकता एवं अखण्डता में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं। अगर धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्राओं को राष्ट्रीयता से जोड़ दिया जाय तो वह देश की मुख्य धारा के सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण साधन बन सकती हैं। यात्रा संघ “सीमान्त पर्यटन" के प्रचार एवं प्रसार में कार्यरत है जिससे देश की मुख्य धारा में रहने वाले नागरिकों को देश के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले बंधुओं से संवाद का अवसर मिले तथा नागरिकों को सीमान्त क्षेत्रों की विषम परिस्थितियों की कल्पना एवं अनुभूति हो। यात्रा संघ की योजना हैं कि जहाँ एक ओर देश के प्रमुख शहरों में सीमान्त विषयों के प्रति जागरूकता पैदा हो वही सीमान्त क्षेत्रों में देश की मुख्यधारा के प्रति विश्वास एवं समर्थन का भाव दृढ़ हो। यात्रा संघ के क्रियाकलापों में ऐसे क्षेत्रों की यात्रा एवं वहां की विषमताओं और चुनौतियों के प्रति समाज में जागरण एवं सहृदयता के भाव का संचार एक प्रमुख लक्ष्य है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा देश की चारों दिशाओं में मठस्थापत्य के मार्ग से देश को एक सूत्र में पिरोने की योजना से प्रेरित हो यात्रा संघ ने भी देश की चारों दिशाओं में यात्रा स्थापित कर उस संकल्प में एक कड़ी को जोड़ा है। अपने लक्ष्य पर अग्रसर होते हुए यात्रा संघ ने देश की चारो दिशाओं में यात्रा का संकल्प लिया और उसे पूरा किया। धार्मिक व आध्यात्मिक के साथ-साथ राष्ट्रीय उद्देश्यों को लेकर आयोजित इस साहसिक यात्रा में सम्मिलित होकर राष्ट्र धर्म व संस्कृति की रक्षा का संकल्प लें।


वर्तमान परिदृश्य
आज विश्व पटल पर जो भी संभावनाएँ बन रही है, वह यही इंगित करती है कि केवल और केवल वसुधैव कुटंबकम को पोषित करने वाला विचार ही सही दिशा का सूचक हैं कमोबेश समाज एवं मानव जीवन के हर क्षेत्र में इस विचार के पोषोकों एवं अनुयायीयों ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। यह भी लगभग तय हो चुका है कि विश्व के संत्रासित एवं घबराए मनुष्य को छाया यह भारतीय विचार एवं भारत ही दे सकता है परन्तु जिस प्रकार प्रातः काल होने से पहले रात्रि का आखिरी प्रहर अपने में घटाटोप अंधेरा समेटे होता है उसी प्रकार इस विचार पर एवं विचार पोषकों पर हो रहे सांस्कृतिक एवं राजनितिक हमलों ने एक विचित्र सी तस्वीर बना दी है। धीरता अधीरता में परिवर्तित हो रही है और जागरूक व्यक्ति एक विचित्र ऊहापोह में फंस गया है कि मार्ग कहाँ से निकलेगा। देश में एवं आस पास चारों ओर अस्थिरता एवं वैमनस्यता का वातावरण, जहाँ देश की सीमाओं पर हलचल पैदा करता है वही उन क्षेत्रों मे रहने वाले लोगों के मनों में केन्द्रीय नेतृत्व एवं देश की मुख्य धारा के प्रति असंतुष्टता के भाव का अविर्भाव करता है। बार-बार यह स्वर गुंजायमान होते हैं कि सीमान्त प्रदेशों से जुड़ा जनमानस राष्ट्र की मुख्य धारा से क्षुब्ध है। वह चाहे पाकिस्तान से लगी सीमाएं हो अथवा चीन एवं बांगलादेश से लगा भूभाग, अविश्वास उदासीनता को जन्म देने में तत्पर दिखती है।